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होता॑ध्व॒र्युराव॑याऽअग्निमि॒न्धो ग्रा॑वग्रा॒भऽउ॒त शस्ता॒ सुवि॑प्रः। तेन॑ य॒ज्ञेन॒ स्व᳖रङ्कृतेन॒ स्वि᳖ष्टेन व॒क्षणा॒ऽआ पृ॑णध्वम् ॥२८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

होता॑ अ॒ध्व॒र्युः। आव॑या॒ इत्याऽव॑याः। अ॒ग्नि॒मि॒न्ध इत्या॑ग्निम्ऽइ॒न्धः। ग्रा॒व॒ग्रा॒भ इति॑ ग्रावऽग्रा॒भः। उ॒त। शस्ता॑। सुवि॑प्र॒ इति॑ सुऽवि॑प्रः। तेन॑। य॒ज्ञेन॑। स्व॑रङ्कृते॒नेति॒ सुऽअ॑रङ्कृतेन। स्वि᳖ष्टे॒नेति॒ सुऽइ॑ष्टेन। व॒क्षणाः॑। आ। पृ॒ण॒ध्व॒म् ॥२८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:25» मन्त्र:28


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (होता) ग्रहण करने हारा वा (आवयाः) जिससे अच्छे प्रकार यज्ञ, सङ्ग और दान करते वह वा (अग्निमिन्धः) अग्नि को प्रदीप्त करने हारा वा (ग्रावग्राभः) मेघ को ग्रहण करने हारा वा (शंस्ता) प्रशंसा करने हारा (उत) और (सुविप्रः) जिसके समीप अच्छे-अच्छे बुद्धिमान् हैं, वह (अध्वर्युः) अहिंसा यज्ञ का चाहनेवाला उत्तम जन जिस (स्वरङ्कृतेन) सुन्दर सुशोभित किये (स्विष्टेन) सुन्दर भाव से चाहे और (यज्ञेन) मिले हुए यज्ञ आदि उत्तम काम से (वक्षणाः) नदियों को पूर्ण करता अर्थात् यज्ञ करने से पानी वर्षा, उस वर्षे हुए जल से नदियों को भरता, वैसे (तेन) उस काम से तुम लोग भी (आ, पृणध्वम्) अच्छे प्रकार सुख भोगो ॥२८ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य सुगन्धि आदि से उत्तम बनाये हुए होम करने योग्य पदार्थों को अग्नि में छोड़ने से पवन और वर्षा जल आदि पदार्थों को शोध कर नदी-नद आदि के जलों की शुद्धि करते हैं, वे सदैव सुख भोगते हैं ॥२८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

(होता) आदाता (अध्वर्युः) अहिंसायज्ञमिच्छुः (आवयाः) येनावयजन्ति सः (अग्निमिन्धः) अग्निप्रदीपकः (ग्रावग्राभः) यो ग्रावाणं मेघं गृह्णाति सः (उत) (शंस्ता) प्रशंसकः (सुविप्रः) शोभना विप्रा मेधाविनो यस्मिन् सः (तेन) (यज्ञेन) सङ्गतेन (स्वरङ्कृतेन) सुष्ठ्वलंकृतेन। अत्र कपिलकादित्वाद् रेफः। (स्विष्टेन) शोभनेनेष्टेन (वक्षणाः) नदीः। वक्षणा इति नदीनामसु पठितम् ॥ (निघं०१.१३) (आ) (पृणध्वम्) समान्तात् सुखयत ॥२८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा होताऽऽवया अग्निमिन्धो ग्रावग्राभः शंस्तोत सुविप्रोऽध्वर्युर्येन स्वरंकृतेन स्विष्टेन यज्ञेन वक्षणा अलङ्करोति, तथा तेन यूयमप्यापृणध्वम् ॥२८ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्याः सुगन्ध्यादिसुसंस्कृतानां हविषां वह्नौ प्रक्षेपेण वायुवर्षाजलादीनि शोधयित्वा नद्यादिजलानि शोधयन्ति, ते सदा सुखयन्ति ॥२८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे सुगंधित पदार्थ होमात टाकून वायू व वष्टिजल इत्यादी पदार्थ शुद्ध करून नद्यांचे पाणी शुद्ध करतात ती सदैव सुख भोगतात.